हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखते हो? हां, ज्ञानवापी को लेकर हिंदुओं की भावनाएं हैं, RSS प्रमुख मोहन भागवत इन दो बातों के बीच क्‍या छिपा है, जानें

June 04, 2022 0 Comments

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को नागपुर में स्वयंसेवकों की एक सभा से पहले अपने संबोधन में कई संदेश दिए। उन्होंने “श्रद्धा” और “ऐतिहासिक तथ्यों” दोनों के आधार पर वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद पर हिंदू दावे का समर्थन किया, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि संघ देश भर में किए जा रहे ऐसे दावों का समर्थन नहीं करता।

उन्होंने दोहराया कि इस्लाम “आक्रमणकारियों” के जरिए भारत आया था, लेकिन इसके अनुयायी बाहरी नहीं हैं। काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर पहली बार बोलते हुए भागवत ने कहा, विवाद बरसों पहले शुरू हो गया था, जिसके लिए वर्तमान में किसी भी पक्ष को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।”

ज्ञानवापी का एक इतिहास है जिसे हम अभी नहीं बदल सकते। हमने वह इतिहास नहीं बनाया। इसे न आज के हिंदुओं ने बनाया और न ही आज के मुसलमानों ने, ये उस समय घटा। इस्लाम यहां आक्रमणकारियों के साथ आया था। इन हमलों में इस देश की आजादी चाहने वालों का मनोबल गिराने के लिए मंदिरों को तोड़ा गया। ऐसे हजारों मंदिर हैं। हिंदुओं के दिलों में खास महत्व रखने वाले मंदिरों के मुद्दे अब उठाए जा रहे हैं… रोज कोई नया मुद्दा नहीं उठाना चाहिए। झगड़े क्यों बढ़ाते हैं? ज्ञानवापी को लेकर हमारी आस्था पीढ़ियों से चली आ रही है। हम जो कर रहे हैं वह ठीक है। लेकिन हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश क्यों? मस्जिदों में जो होता है वह भी इबादत का ही एक रूप है। ठीक है, यह बाहर से आया है। लेकिन जिन मुसलमानों ने इसे स्वीकार किया है, वे बाहरी नहीं हैं, इसे समझने की जरूरत है। भले ही उनकी प्रार्थना बाहर (इस देश) से हो, और वे इसे जारी रखना चाहते हैं तो अच्छी बात है। हमारे यहां किसी पूजा का विरोध नहीं है”

आरएसएस प्रमुख द्वारा संबोधित सभा में देश भर से चुने गए 700 से अधिक स्वयंसेवक शामिल थे, जो 9 मई से शुरू होने वाले एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए एकत्र हुए थे। ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष के याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि अदालत के आदेश से हुए एक वीडियोग्राफिक सर्वेक्षण में मस्जिद के अंदर एक शिवलिंग पाया गया है। मामला कोर्ट में है।

भागवत ने आपस में मिल बैठ कर सहमति से कोई रास्ता निकालने का सुझाव दिया है। उन्होंने कहा- जरूरी नहीं हर बार कोई रास्ता निकल आए। ऐसे में अदालत का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। फिर कोर्ट जो निर्णय देगा उसको मानना चाहिए। आरएसएस के साथ मिलकर काम करने वाले एक वरिष्ठ भाजपा नेता का कहना है, यह उन कट्टरपंथियों के लिए एक बहुत ही चतुर चेतावनी है जो हर दूसरे स्मारक या मस्जिद को लेकर विवाद बढ़ाना चाहते हैं।

भाजपा नेता ने आगे कहा, ”यह संदेश महत्वपूर्ण था क्योंकि यह एक तथ्य है कि कई इस्लामी स्मारक मंदिरों या हिंदू पूजा स्थलों को ध्वस्त करने के बाद बनाए गए थे। लेकिन जैसा कि उन्होंने कहा, इसका यह मतलब नहीं है कि हर जगह पर दावा किया जा सकता है और आज के मुसलमानों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।”

भाजपा के आलोचक इसे “रुख का परिवर्तन” कह सकते हैं। पार्टी के नेताओं की माने तो ‘संदर्भ’ बदल गया है, भाजपा कभी कांग्रेस के प्रभुत्व के खिलाफ लड़ने वाली विपक्षी पार्टी थी। लेकिन अब भारतीय राजनीति में प्रमुख शक्ति है। एक विपक्षी दल के रूप में भाजपा मांग कर सकती थी कि सरकार विवादों का निपटारा करे। विपक्ष में रहते हुए भाजपा जनता की भावना का हवाला देकर अदालत के फैसले या सरकार के फैसलों को अस्वीकृति भी व्यक्त कर सकती थी। लेकिन सत्ताधारी पार्टी के रूप में सरकार को भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए भी निष्पक्ष और संवैधानिक साधनों के माध्यम से कार्य करना होगा।

भाजपा के एक अन्य नेता ने कहा कि भागवत का बयान विवादित स्थलों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर दिया गया है। सीता राम गोयल और अरुण शौरी की एक पुस्तक में ऐसे स्थानों की संख्या 18,00 बतायी गई है। वहीं विहिप का कहना है कि यह संख्या 30,000 से अधिक है। इस नेता की माने तो संघ काशी के अलावा मथुरा कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के समाधान पर जोर देगा।

मोहन भागवत को स्टेट्समैन कहते हुए एक भाजपा नेता ने कहा, भागवतजी ने एक दार्शनिक और व्यावहारिक समाधान दिया है। हम अतीत के लिए न तो हिंदुओं को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं और न मुसलमानों को।

इससे इतर भाजपा के दूसरे नेता ने बताया, मोहन भागवत के भाषण का मतलब यह नहीं है कि पार्टी या आरएसएस पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 में संशोधन के लिए जोर देना बंद कर देगा। वह मांग बनी हुई है। यह हिंदू बहुसंख्यकों की भावनाओं का मामला है।

संयोग देखिए कि विश्व हिन्दू परिषद की ओर शुरू किए गए अयोध्या के राम मंदिर आन्दोलन में भी आरएसएस देर से शामिल हुआ था। भाजपा तो जून 1989 के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद राम मंदिर आन्दोलन से जुड़ी थी यानी आरएसएस से भी ज्यादा देरी से। मोहन भागवत ने अपने हालिया भाषण में कहा भी, ”किसी ऐतिहासिक कारण से हम अपनी प्रकृति के विरुद्ध जाकर राम जन्मभूमि का आंदोलन शामिल हुए थे। हमने उसे पूरा किया। लेकिन अब भविष्य में आरएसएस किसी मंदिर आन्दोलन में शामिल नहीं होगा।” खैर, मंत्रियों सहित भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अब मंदिर-मस्जिद के किसी भी नए विवाद को आंदोलन के बजाय परामर्श या अदालतों से सुलझाया जाने के हिमायती हैं।

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Amol Kote

Some say he’s half man half fish, others say he’s more of a seventy/thirty split. Either way he’s a fishy bastard.

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