सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला- लोगों को है कोरोना टीका लेने से मना करने का हक, सरकार के पास सबूत नहीं कि बिना वैक्सीन वाले कोविड फैलाने के लिए ज्यादा जिम्मेदार https://ift.tt/C0r7Ujk
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी भी व्यक्ति को टीका लगाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव के नेतृत्व वाली पीठ ने वैक्सीन ट्रायल के आंकड़ों का खुलासा करने और देश के विभिन्न हिस्सों में अधिकारियों की ओर से जारी “वैक्सीन मैंडेट” पर रोक लगाने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “कोर्ट के सामने जो तथ्य पेश किए गए हैं, उनके आधार अदालत टीकाकरण के लाभों पर विशेषज्ञों के लगभग सर्वसम्मत विचारों को दर्शाती है … यह अदालत संतुष्ट है कि भारत की वर्तमान टीकाकरण नीति को प्रासंगिक है और गैरजरूरी नहीं कहा जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना का टीका लगवाने के बाद किस प्रकार के दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं, इसका डेटा भी सार्वजनिक करने को कहा है। साथ ही क्लीनिकल ट्रायल का डेटा भी सरकार को जारी करने का आदेश दिया गया है।
जनवरी में दाखिल हलफनामे में केंद्र साफ कर चुका है रुख
केंद्र सरकार ने 17 जनवरी 2022 को कोरोना वैक्सीनेशन पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। केंद्र ने अपने हलफनामा में कहा था कि देशभर में कोरोना वैक्सीनेशन अनिवार्य नहीं है और न ही किसी पर वैक्सीन लगवाने का कोई दबाव है।
सुप्रीम कोर्ट ने निजी संस्थाओं के साथ ही सभी अथॉरिटीज को निर्देश दिया है कि वैक्सीन नहीं लगाए जाने पर रखे गए प्रतिबंधों की समीक्षा करनी चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि उसका यह निर्देश केवल कोरोना से जुड़ी स्थिति के लिए है। कोर्ट ने और गहराई से अपने निर्देश को स्पष्ट कर कहा कि कोविड 19 बर्ताव से जुड़ी गाइडलाइन, जो अथॉरिटीज ने जारी की हैं, उनसे इसका कोई लेना-देना नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार ने ऐसा कोई डेटा कोर्ट के सामने पेश नहीं किया है, जिससे यह पता चलता हो कि जिन लोगों ने वैक्सीन नहीं ली है, उनमें संक्रमण का खतरा ज्यादा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि वैक्सीन की अनिवार्यता तब तक आनुपातिक तौर पर नहीं मानी जा सकती है जब तक कि इन्फेक्शन रेट बेहद कम होने का दावा करने वाला डेटा उपलब्ध न हो।
क्या है अनुच्छेद 21
संविधान के अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि “कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।” मतलब अनुच्छेद 21 इन दोनों अधिकारों की सुरक्षा प्रदान करता है। अनुच्छेद 21 को भारत सरकार के अधिनियम 1935 में अनुच्छेद 21 का प्रावधान किया गया है। यह सुनिश्वित करता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। अनुच्छेद 21 भारतीय संविधान के भाग III के अंतर्गत आता है और भारत के सभी नागरिकों को दिए जाने वाले मौलिक अधिकारों में से है।
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