राजद्रोह कानून: संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 10 को ‘सुप्रीम सुनवाई’, बोले पवार- धारा का सरकारें कर रहीं दुरुपयोग https://ift.tt/veiB9lI
इस बीच उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि वह राजद्रोह पर औपनिवेशिक युग के दंड कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 10 मई को सुनवाई करेगा। इसके साथ ही उसने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए और समय दिया। भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (देशद्रोह) लगाने को लेकर अक्सर विरोध की आवाजें उठती रही हैं। कई नेताओं ने आरोप लगाया है कि इस कानून का सियासी दुरुपयोग होता है और उन लोगों को परेशान किया जाता है, जो सत्ताधारी दल के खिलाफ होते हैं।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने कार्यकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (देशद्रोह) लगाने के लिए पुलिस कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा कि इस तरह के उपाय स्वतंत्रता को दबाते हैं और शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से उठाए गए असंतोष की किसी भी आवाज को खत्म करते हैं। उधर, कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा है कि “हम कानून पर आगे बढ़ने को चुनौती नहीं दे रहे हैं, लेकिन 124 ए के तहत सरकार के अधिकार का विरोध कर रहे हैं।”
प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की एक पीठ ने राजद्रोह कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की और कुछ समय बाद उसे अगले मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दिया। इससे पहले, केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए अदालत से कुछ और समय देने का अनुरोध करते हुए कहा कि चूंकि यह मुद्दा अत्यधिक महत्वपूर्ण है इसलिए जवाब दाखिल करने के लिए वकीलों द्वारा तैयार किए गए मसौदे पर सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी का इंतजार किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि हाल ही में कुछ नई याचिकाएं भी दायर की गई हैं और उन पर जबाव देना भी आवश्यक है। इसके बाद प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ इस मामले को मंगलवार दोपहर दो बजे के लिए सूचीबद्ध करें। सॉलिसिटर जनरल सोमवार तक जवाब (हलफनामा) दाखिल करें। इस मामले को अब और स्थगित नहीं किया जाएगा।’’
पीठ ने 27 अप्रैल को केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था और कहा था कि वह पांच मई को मामले में अंतिम सुनवाई शुरू करेगी तथा स्थगन के लिए किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं करेगी। राजद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून के दुरुपयोग से चिंतित शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह उस प्रावधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने और महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने के लिए किया था।
भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह) की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ और पूर्व मेजर-जनरल एस जी वोम्बटकेरे की याचिकाओं की सुनवाई पर सहमत होते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता “कानून का दुरुपयोग” है।
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