मोढ़ेरा सूर्य मंदिर: भगवान सूर्य की स्वर्ण प्रतिमा को इस्लामी आक्रांता खिलजी ने जब लूटा, तब से नहीं होता पूजा-पाठ
--- मोढ़ेरा सूर्य मंदिर: भगवान सूर्य की स्वर्ण प्रतिमा को इस्लामी आक्रांता खिलजी ने जब लूटा, तब से नहीं होता पूजा-पाठ लेख आप ऑपइंडिया वेबसाइट पे पढ़ सकते हैं ---
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 अगस्त 2020 को ट्वीट करके मोढ़ेरा सूर्य मंदिर की सुंदरता के दर्शन पूरे भारत को कराए थे और शायद उनके इस ट्वीट के बाद यह मंदिर चर्चा में आया। लेकिन वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरण वाले इस रामायण कालीन मंदिर को भी उसी कट्टरपंथी इस्लामी मानसिकता ने नुकसान पहुँचाया, जिसके कारण हिन्दुओं के लगभग 40,000 मंदिर नष्ट हो गए। एक इस्लामी आक्रांता की घृणा का ही परिणाम है कि सदियों गुजर जाने के बाद आज भी गुजरात के मेहसाणा में स्थित इस मंदिर में कोई पूजा-पाठ नहीं होती।
मंदिर का इतिहास
गुजरात के मेहसाणा जिले में मोढ़ेरा नामक गाँव में पुष्पावती नदी के किनारे स्थित है, मोढ़ेरा सूर्य मंदिर। इसका वर्णन स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण में भी किया गया है। इसका इतिहास रामायण कालीन है। मंदिर के आसपास का क्षेत्र धर्मरण्य के नाम से जाना जाता था। भगवान श्री राम जब रावण का संहार कर वापस आए तो उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से एक ऐसा स्थान बताने का निवेदन किया, जहाँ वह ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति प्राप्त कर सकें। तब महर्षि ने श्री राम को इसी स्थान के बारे में बताया। इसका तात्पर्य यह हुआ कि यह दिव्य स्थान का अस्तित्व रामायण काल में भी पहले से ही था।
आधुनिक इतिहास की बात करें तो मोढ़ेरा सूर्य मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में सूर्यवंशी सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम ने कराया था। सूर्य भगवान, सोलंकी राजाओं के कुल देवता थे और उन्हीं को समर्पित करते हुए भीमदेव प्रथम ने सन् 1026 में इस मंदिर का निर्माण कराया था। इसकी जानकारी मंदिर में उत्कीर्णित शिलालेख में मिलती है।
मंदिर की अप्रतिम संरचना
मोढ़ेरा सूर्य मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गुढ़ामंडप, सभामंडप और कुंड। गुढ़ामंडप मंदिर का मुख्य भाग है जहाँ गर्भगृह स्थित है। गर्भगृह की दीवारों पर पौराणिक कथाओं का चित्रण किया गया है। मंदिर का सभामंडप 52 स्तंभों पर निर्मित किया गया है और ये 52 स्तंभ वर्ष के 52 सप्ताह को प्रदर्शित करते हैं। कुंड तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गई हैं।
इस कुंड को सूर्यकुंड या रामकुंड के नाम से जाना जाता है। मंदिर की एक विशेषता है कि इस मंदिर को बनाने में चूने या गारे का प्रयोग नहीं हुआ है। मोढ़ेरा सूर्य मंदिर अपनी वास्तुशिल्प के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ कई ऐसे स्तंभ हैं, जो कुंड के पास से देखने पर अष्टकोणीय आकार में दिखाई देते हैं लेकिन जब उन्हें ऊपर से देखा जाता है तो ये स्तंभ गोलाकार दिखाई देते हैं।
मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिर जैसी नक्काशी के कारण मोढ़ेरा सूर्य मंदिर को गुजरात का खजुराहो कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया गया है कि सूर्योदय होने पर सूर्य की किरणें सीधे ही मंदिर के गर्भगृह तक पहुँचती हैं। पूरे मंदिर को मारू-गुर्जर स्थापत्य कला के अनुसार बनाया गया है। हर साल संक्रांति के अवसर पर यहाँ भगवान सूर्य के दर्शन किए जाते हैं और कुंड में स्नान किया जाता है।
इस्लामिक आक्रमण
देश के बहुतायत मंदिरों की तरह मोढ़ेरा सूर्य मंदिर भी इस्लामी आक्रांताओं के कट्टरपंथ की भेंट चढ़ गया। अलाउद्दीन खिलजी ने न केवल इस मंदिर में तोड़फोड़ की बल्कि उसने मंदिर के गर्भगृह में स्थापित भगवान सूर्य की स्वर्ण प्रतिमा और मंदिर के अकूत खजाने को भी लूट लिया। खिलजी ने इस मंदिर को खंडित और अपवित्र कर दिया, जिसके बाद से इस मंदिर में किसी भी तरह की पूजा-पाठ वर्जनीय हो गई और आज भी सदियों पुराने इस मंदिर में किसी भी तरह की कोई उपासना नहीं होती है।
कैसे पहुँचें?
मेहसाणा जिला मुख्यालय से मोढ़ेरा सूर्य मंदिर की दूरी लगभग 26 किलोमीटर (किमी) है। यहाँ का सबसे नजदीकी हवाईअड्डा अहमदाबाद का सरदार वल्लभभाई पटेल एयरपोर्ट है, जो मंदिर से लगभग 97 किमी दूर है।
मेहसाणा रेलवे स्टेशन, रेल मार्ग से दिल्ली, बेंगलुरु और मुंबई जैसे शहरों से जुड़ा हुआ है। जयपुर-अहमदाबाद रेल लाइन पर स्थित मेहसाणा गुजरात के लगभग सभी बड़े शहरों से भी रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है। मंदिर से मेहसाणा रेलवे जंक्शन की दूरी लगभग 28 किमी है।
सड़क मार्ग से भी मेहसाणा पहुँचना बहुत आसान है। सड़क मार्ग से भी मेहसाणा, गुजरात और देश के कई बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।
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