उपचुनाव में ढहे मजबूत किलेः अपने गढ़ में हारे अखिलेश यादव तो संगरूर में हार से लोकसभा में आप का सफाया
लोकसभा की तीन सीटों पर हुए उप चुनावों ने दिग्गजों को हिलाकर रख दिया। उनके सबसे मजबूत किले पल भर में धाराशाई हो गए। यूपी में अखिलेश यादव आजमगढ़ के साथ रामपुर जैसी सीटों पर मजबूत होने के बाद भी हार गए तो उधर पंजाब में आप को करारा झटका लगा। सीएम मान जिस सीट पर 2014 से जीत दर्ज करते आ रहे थे वहां आप हार गई। अरविंद केजरीवाल के लिए सबसे शर्मनाक बात ये है कि 2014 के बाद पहली बार लोकसभा में उनका सांसद नहीं होगा।
रामपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की है। घनश्याम लोधी ने सपा प्रत्याशी आसिम रजा को 42 हजार वोटों से हराया। रामपुर में 41.39 फीसदी मतदान हुआ है. रामपुर से 6 प्रत्याशी मैदान में हैं। रामपुर उपचुनाव में आजम खान की साख दांव पर लगी थी। हार किस कदर सालने वाली रही कि आजम खान ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से निष्पक्ष चुनाव कराने की मांग कर डाली तो अखिलेश ने भी ट्विटर पर अपने गुस्से का इजहार किया। जेल से लौटने के बाद आजम के लिए रामपुर जीतना जरूरी था। माना जा रहा था कि अपने गढ़ में उन्हें लोगों की सहानुभूति मिलेगी। लेकिन नतीजे आए तो मजबूत किला हाथ से निकल गया।
आजमगढ़ उपचुनाव में भाजपा के दिनेश लाल निरहुआ ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को मात दी। समाजवादी पार्टी का गढ़ कहे जाने वाले आजमगढ़ में भारतीय जनता पार्टी ने बड़ा उलटफेर कर दिया है। लोकसभा उपचुनाव में भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को पछाड़ दिया है। दिनेश लाल यादव यादव 8679 मतों से जीते। बीजेपी के दिनेश लाल यादव निरहुआ को 2,99,968 मत मिले। सपा के धमेंद्र यादव को 2,90,835 वोट जबकि बीएसपी के गुड्डू जमाली को 2,57,572 वोट मिले।
जीत कितनी बड़ी थी कि निरहुआ ने कहा कि आजमगढ़वासियों आपने कमाल कर दिया है। यह आपकी जीत है। उपचुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही जिस तरीके से आप सबने भाजपा को प्यार, समर्थन और आशीर्वाद दिया, यह उसकी जीत है। यह जीत आपके भरोसे और देवतुल्य कार्यकर्ताओं की मेहनत को समर्पित है। अखिलेश को ये हार भारी पड़ेगी, क्योंकि आजमगढ़ से 2014 में मुलायम तो 2019 में मोदी लहर के बाद अखिलेश जीते थे। मौजूदा समय में कोई लहर नहीं थी तो सपा गढ़ गंवा बैठी।
जीत के कितने मायने हैं ये इस बात से समझा जा सकता है कि पीएम मोदी ने ट्वीट कर आजमगढ़ और रामपुर की जीत को ऐतिहासिक करार दे डबल इंजन सरकार की कामयाबी बता डाला। बीजेपी को पता था कि मुलायम सिंह के गढ़ में सपा को हराना आसान नहीं तो रामपुर में आजमखान से पार पाना बहुत टेढ़ी खीर लग रहा था। लेकिन नतीजों ने दिखाया कि मोदी-योगी की रणनीति कामयाब रही तो अखिलेश को उप चुनावों से दूर रहना उनके प्रत्याशियों के लिए खासा भारी साबित हुआ।
मजबूत गढ़ में औंधे मुंह गिरी आप
पंजाब की संगरूर लोकसभा सीट पर से शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के प्रमुख सिमरनजीत सिंह मान ने जीत दर्ज की। नतीजे भगवंत मान के लिए शुभ संकेत नहीं है, क्योंकि इससे पहले मान ने साल 2014 और 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में इस सीट पर जीत दर्ज की थी। आज उन्हीं के गढ़ में उनकी पार्टी पिछड़ गई। फरवरी में हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में भगवंत मान के विधायक चुने जाने और लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देने के कारण इस सीट पर उपचुनाव कराने की जरूरत पड़ी थी। सिमरनजीत सिंह मान ने आप के गुरमेल सिंह को 5822 मतों से हराया।
संगरूर सीट पर 23 जून को हुए मतदान में केवल 45.30 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। जबकि 2019 में यहां 72.40 फीसदी वोट पड़े थे। कांग्रेस प्रत्याशी दलवीर सिंह गोल्डी तीसरे, भाजपा प्रत्याशी केवल ढिल्लों चौथे और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) की कमलदीप कौर राजोआना पांचवें स्थान पर रहीं। गोल्डी को 79,668, ढिल्लों को 66,298 और कौर को 44,428 मत मिले। विश्लेषकों का मानना है कि मान की सीट पर हार का मतलब आप सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ पहले ही तरह से नहीं रहा। लोगों ने उम्मीद करके आप को जिताया था पर सरकार ख्याली महल बनाने में लगी रही। मूसेवाला की हत्या को आप की लोकप्रियता में गिरावट का बड़ा जिम्मेदार माना जा रहा है तो अकाल तख्त के जत्धेदार की सुरक्षा व्यवस्था को वापस लेने से पंथक वोटर भी आप से दूर हो गए। इस फैसले को पंथ से टकराव के तौर पर देखा गया।
#WATCH | Punjab: It's a win of our party workers and of the teachings that Sant Jarnail Singh Bhindranwale have given: Simranjit Singh Mann of Shiromani Akali Dal (Amritsar) on his win in Sangrur Lok Sabha bypoll pic.twitter.com/RGJ6pmWQbc
— ANI (@ANI) June 26, 2022
पंजाब चुनाव की सबसे खास बात ये है कि सिमरनजीत सिंह मान को उग्रपंथी विचारधाराका समर्थक माना जाता है। जीत के बाद उन्होंने कहा भी कि जनरैल सिंह भिडरवाले ने हमें जो शिक्षा दी ये जीत उसका ही नतीजा है। उनके तेवरों से साफ है कि पंथक वोट उनके पाले में पूरी तरह से रहे। जानकार कहते हैं कि एक तरफ प्रशासन को संभालने की नाकामी और पंथ से नाराजगी केजरीवाल को आगे भी भारी पड़ सकती है।
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