राष्ट्रपति चुनावः कभी हां तो कभी ना, नीतीश को उम्मीदवार के तौर पर आगे करने की क्या है जेडीयू की रणनीति, समझिए

June 13, 2022 0 Comments

देश में अगले महीने राष्ट्रपति चुनाव होना है। इस चुनाव में उम्मीदवार के रूप में जदयू के मुखिया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चर्चा जोरों से हैं। चर्चा भी उन्हीं की पार्टी की ओर से होती दिख रही है। पार्टी के कुछ नेता उन्हें उम्मीदवार बनाने के लिए कह रहे हैं तो कुछ इसे सिर्फ अटकलें बता रहे हैं। इस हां-ना को बीजेपी के खिलाफ जदयू की रणनीति बताई जा रही है।

पिछले चार महीनों में जदयू ने भारत के राष्ट्रपति पद के लिए संभावित उम्मीदवार के रूप में नीतीश कुमार का नाम कई बार लिया है। फिर इसे कई बार खारिज भी कर दिया है। फरवरी में नीतीश कुमार, दिल्ली में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से मिले थे, जिसके बाद नीतीश के नाम की चर्चा होने लगी थी। तब पार्टी के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने कहा था- “अगर ऐसा होता है, तो यह जदयू और बिहार के लिए बहुत बड़ा सम्मान होगा”।

हालांकि इसके बाद नीतीश खुद सामने आए और अपनी उम्मीदवारी को खारिज कर दिया। इसके बाद जब हाल ही में राष्ट्रपति चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा हुई तो फिर से जदयू के एक खेमे ने नीतीश का नाम उठाना शुरू कर दिया। बिहार सरकार में मंत्री और नीतीश के खास माने जाने वाले श्रवण कुमार ने एक टीवी चैनल से कहा- “नीतीश कुमार का संसदीय और विधायी करियर बेहतरीन रहा है। वह भारत के राष्ट्रपति पद के लिए एक अच्छे उम्मीदवार हो सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो हम सभी को बहुत गर्व होगा। यह बिहार के लिए भी गर्व की बात होगी”।

इसके बाद शनिवार को जदयू के एक अन्य मंत्री संजय कुमार झा ने इसे खारिज करते हुए कहा कि नीतीश कुमार को 2025 तक बिहार की सेवा करने का जनादेश मिला है। वो बिहार में ही रहेंगे। इसके अलावा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ​​ललन सिंह ने भी इसे सिर्फ अफवाह करार दिया।

राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि क्या यह जदयू की रणनीति का हिस्सा है, जो पहले राष्ट्रपति पद के लिए नीतीश के नाम का प्रस्ताव करता है और फिर इसे वापस ले लेता है। सवाल ये भी है कि क्या नीतीश की मंजूरी के बिना जदयू में ऐसा कोई बयान जारी कर सकता है?

ऐसा लगता है कि यह भाजपा पर दवाब बनाने के लिए जदयू की रणनीति है। बीजेपी को जाति जनगणना के प्रस्ताव पर पहले ही नीतीश पीछे धकेल चुके हैं। जदयू को पता है कि भाजपा को अपने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए उसकी पार्टी के महत्वपूर्ण वोटों की आवश्यकता होगी। केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान इस मुद्दे पर चर्चा के लिए पिछले महीने पटना में नीतीश से मिल चुके हैं।

हालांकि जदयू को शायद यह भी पता होगा कि बीजेपी कभी भी नीतीश को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार नहीं बनाएगी। क्योंकि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पद है जिसपर बीजेपी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करने का जोखिम नहीं उठा सकती है जो उससे असहमत हो सकता है और नीतीश कई मुद्दों पर बीजेपी से अलग राय रख चुके हैं, एक बार तो कांग्रेस के साथ भी जा चुके हैं।

उधर बीजेपी ये जानती है कि नीतीश अगर दिल्ली पहुंच गए तो राज्य में जदयू का जनाधार खत्म हो जाएगा, क्योंकि नीतीश के उत्तराधिकारी के रूप में उनके कद का कोई नेता दिख नहीं रहा है। उधर जदयू बीजेपी पर इस चुनाव के बहाने दवाब बनाने में जुटी है क्योंकि उसे पता है कि बीजेपी के पास बड़े सहयोगी नहीं हैं और भाजपा अपने सबसे बड़े सहयोगी जदयू को नाराज नहीं कर सकती है। इसके अलावा बीजेपी को लग रहा है कि अगर नीतीश को राष्ट्रपति बनाकर दिल्ली भेज देती है और वो अपना सीएम बना लेती है तो जदयू को एकजुट रखने में भाजपा विफल रह सकती है। जिसका फायदा राजद को हो सकता है।

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Amol Kote

Some say he’s half man half fish, others say he’s more of a seventy/thirty split. Either way he’s a fishy bastard.

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