Gyanvapi masjid case: 1991 में पहली बार कोर्ट पहुंचा था मामला, जानिए कहां से शुरू हुआ विवाद और क्या है इतिहास
काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी परिसर का विवाद कोई नया नहीं है। लेकिन मामले में तब मोड़ आ गया जब अगस्त 2021 में मां श्रृंगार गौरी की प्रतिमा के नियमित दर्शन की मांग को लेकर वाराणसी की सिविल कोर्ट सीनियर डिवीजन में 5 महिलाओं ने याचिका दायर की। उसके बाद ही कोर्ट ने सर्वे का आदेश देकर कोर्ट कमिश्वर के साथ वकीलों की टीम बना डाली।
हालांकि विवाद तब शुरू हुआ जब तकरीबन 350 साल पहले मुगल शासक औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया। अदालत में ये केस 1991 में पहुंचा पर 31 साल बाद भी कोई फैसला नहीं हो सका। ज्ञानवापी मस्जिद का केस 1991 से वाराणसी की लोकल कोर्ट अदालत में चल रहा है। पहली याचिका स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की तरफ से दाखिल की गई थी। उन्होंने ज्ञानवापी में पूजा करने की मांग अदालत से की थी। उनका ये भी कहना था कि सारे ज्ञानवापी परिसर को काशी विश्वनाथ का हिस्सा माना जाए।
1998 में इस मामले में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की एंट्री हो गई। कमेटी सीधे हाईकोर्ट गई और दलील रखी कि मामले में सिविल कोर्ट को सुनवाई का अधिकार नहीं है। उसके बाद से लोअर कोर्ट में चल रही सुनवाई पर स्टे लग गया। 2019 में रस्तोगी नाम के शख्स ने स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की तरफ से याचिका दायर कर मस्जिद परिसर के सर्वे की मांग रखी।
2020 में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने सर्वे का विरोध किया तो रस्तोगी ने फिर से याचिका दाखिल करके मांग की कि लोअर कोर्ट में सुनवाई फिर से शुरू की जाए, क्योंकि हाईकोर्ट ने स्टे की समय सीमा को और नहीं बढ़ाया है।
उधर, सिविल कोर्ट ने पांच महिलाओं की याचिका पर विवाद की हकीकत जानने के लिए वकीलों का एक कमीशन गठित करने के साथ अधिवक्ता कमिश्नर के रूप में अजय कुमार मिश्रा को नियुक्त किया। कोर्ट ने कमीशन से 10 मई से पहले रिपोर्ट मांगी है। उधर, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि कार्यवाही सिर्फ हिंदू पक्ष के समर्थन में की जा रही है, जबकि हिंदू पक्ष का कहना है कि कोर्ट के आदेश के बाद भी कमीशन को एंट्री नहीं दी जा रही।
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