पाकिस्तान : अब भस्मासुर बन गया ‘टीटीपी’

May 31, 2022 0 Comments

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक रिपोर्ट में अफगानिस्तान आधारित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से पाकिस्तान की सुरक्षा को लगातार खतरे की ओर ध्यान आकर्षिक किया गया है और कहा गया है कि खूंखार आतंकी संगठन के साथ चल रही शांति प्रक्रिया के सफल होने की संभावनाएं क्षीण हैं।

तालिबान प्रतिबंध समिति 1988 की निगरानी टीम की वार्षिक रिपोर्ट में अफगान-तालिबान के साथ टीटीपी के संबंधों का उल्लेख किया गया है और यह बताया गया है कि पिछले साल गनी शासन के पतन से इस समूह को कैसे फायदा हुआ और इसने अफगानिस्तान से संचालित अन्य आतंकवादी समूहों के साथ अपने संबंध कैसे जोड़े।

पाकिस्तान के डान अखबार के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रतिबंधित टीटीपी में अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी इलाकों में 4,000 लड़ाके हैं तथा वहां इसने विदेशी लड़ाकों का सबसे बड़ा समूह बना लिया है। पिछले साल अगस्त में काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से समिति के लिए टीम की यह पहली रिपोर्ट है। रिपोर्ट में तालिबान की आंतरिक राजनीति, उसके वित्तीय मामलों, अलकायदा, दाएश और अन्य आतंकवादी समूहों के साथ इसके संबंधों तथा सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों के कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

यह रिपोर्ट ऐसे समय प्रकाशित हुई जब पाकिस्तान सरकार और टीटीपी के बीच तीसरे दौर की बातचीत की शुरुआत हुई है। पिछले साल नवंबर में हुई पहले दौर की वार्ता के परिणामस्वरूप एक महीने का संघर्षविराम हुआ था, लेकिन बाद में टीटीपी ने पाकिस्तान पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए संघर्षविराम खत्म कर दिया था। टीटीपी ने बाद में पाकिस्तानी सेना के खिलाफ हमले फिर से शुरू कर दिए।

पाकिस्तान इंस्टीट्यूट आफ पीस स्टडीज द्वारा सारणीबद्ध किए गए आंकड़े बताते हैं कि इस साल, आतंकवादी समूह ने लगभग 46 हमले किए, जिनमें ज्यादातर कानून प्रवर्तन कर्मियों के खिलाफ थे और इनमें 79 लोग मारे गए। टीटीपी 2008 में अपनी स्थापना के बाद से ही पाकिस्तानी सुरक्षाबलों के साथ संघर्ष कर रहा है, ताकि देश में शरिया कानूनों को लागू करने के लिए दबाव डाला जा सके।

हालांकि, संघर्ष समाप्त करने के लिए पाकिस्तान सरकार के साथ बातचीत के लिए अफगान तालिबान द्वारा समूह पर दबाव डाला जा रहा है। वार्ता के नवीनतम दौर में पाकिस्तान सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता 30 मई को समाप्त हो रहे संघर्षविराम को आगे बढ़ाने की है। हालांकि पाकिस्तानी पक्ष ने बातचीत पर पूरी तरह चुप्पी साध रखी है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि समूह (टीटीपी) पाकिस्तान सरकार के खिलाफ एक दीर्घकालिक अभियान पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिसका अर्थ है कि संघर्षविराम समझौतों की सफलता की सीमित संभावना है।

इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की प्रतिबंध समिति की निगरानी टीम (एमटी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान द्वारा बार-बार इनकार करने के बावजूद, पाकिस्तान से संबंध रखने वाले इन आतंकवादी समूहों ने अफगानिस्तान में महत्त्वपूर्ण उपस्थिति बना रखी है। तालिबान सीधे तौर पर आठ में से तीन आतंकी शिविरों को नियंत्रित कर रहा है।

जैश ए-मोहम्मद (जेईएम) अभी भी अपना शिविर अफगानिस्तान के नंगरहार में चला रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लश्कर ए-तैयबा ने कुनार और नंगरहार में ऐसे तीन कैंप बनाए हुए हैं। निगरानी टीम की यह 13वीं रिपोर्ट है और पिछले साल 15 अगस्त को तालिबान द्वारा काबुल पर नियंत्रण करने के बाद से यह पहली रिपोर्ट है। रिपोर्ट में जो निष्कर्ष निकाला गया है वह सदस्य-राज्यों के परामर्श पर आधारित है।

तालिबान प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता वतर्मान में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति कर रहे हैं। दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख, सुहैल शाहीन ने पिछले हफ्ते बताया था कि काबुल की सरकार किसी को भी किसी भी पड़ोसी और क्षेत्रीय देश के खिलाफ अफगानिस्तान की धरती का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी है। हालांकि, भारत अफगानिस्तान में पाकिस्तान स्थित आतंकी समूहों की गतिविधियों और तालिबान के साथ उनके संबंधों को लेकर चिंतित है।

कैसे पनपा टीटीपी

पाकिस्तानी तालिबान की जड़ें जमनी उसी वक्त शुरू हो गई थीं, जब 2002 में अमेरिकी कार्रवाई के बाद अफगानिस्तान से भागकर कई आतंकी पाकिस्तान के कबाइली इलाकों में छिपे थे। इन आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई तो स्वात घाटी में पाकिस्तानी सेना की मुखालफत होने लगी। कबाइली इलाकों में कई विद्रोही गुट पनपने लगे। ऐसे में दिसंबर 2007 को बेयतुल्लाह मेहसूद की अगुआई में 13 गुटों ने एक तहरीक यानी अभियान में शामिल होने का फैसला किया और संगठन का नाम तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान रखा गया।यह अफगानिस्तान के तालिबान संगठन से पूरी तरह अलग है, लेकिन इरादे एक जैसे हैं।

https://ift.tt/nJosS3q

Amol Kote

Some say he’s half man half fish, others say he’s more of a seventy/thirty split. Either way he’s a fishy bastard.

0 Comments: