शिल्पकार के नाम से प्रसिद्ध दुनिया का ‘इकलौता’ मंदिर, पानी में तैरने वाले पत्थरों से निर्माण: तेलंगाना का रामप्पा मंदिर

July 26, 2021 0 Comments

तेलंगाना, रामप्पा मंदिर

--- शिल्पकार के नाम से प्रसिद्ध दुनिया का ‘इकलौता’ मंदिर, पानी में तैरने वाले पत्थरों से निर्माण: तेलंगाना का रामप्पा मंदिर लेख आप ऑपइंडिया वेबसाइट पे पढ़ सकते हैं ---

हाल ही में UNESCO द्वारा तेलंगाना राज्य के वारंगल में स्थित काकतीय रुद्रेश्वर या रामप्पा मंदिर को विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल किया गया है। 12वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर कुछ विशेष कारणों से पूरे विश्व में अद्वितीय है। पहला कारण यह है कि यह (संभवतः) इकलौता ऐसा मंदिर है जिसका नाम उसके शिल्पकार के नाम पर रखा गया और इस मंदिर से जुड़ी सबसे रोचक विशेषता है कि इसका निर्माण ऐसे पत्थरों से हुआ है जो पानी में तैरते हैं। ऐसे पत्थर आज कहीं नहीं पाए जाते हैं। ऐसे में यह आज भी रहस्य है कि इस मंदिर के निर्माण के लिए ये पत्थर आए कहाँ से?

इतिहास

तेलंगाना में तत्कालीन काकतीय वंश के महाराजा गणपति देवा ने सन् 1213 के दौरान एक भव्य एवं विशाल शिव मंदिर के निर्माण का निर्णय लिया। गणपति चाहते थे कि इस मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया जाए कि आने वाले कई वर्षों तक इसका गुणगान होता रहे। मंदिर निर्माण का कार्य उन्होंने अपने शिल्पकार रामप्पा को दिया। रामप्पा ने भी अपने महाराजा द्वारा दिए गए आदेश का अक्षरशः पालन किया और एक भव्य एवं सुंदर मंदिर का निर्माण किया। मंदिर की सुंदरता को देखकर महाराजा गणपति इतने प्रसन्न हुए कि मंदिर का नामकरण रामप्पा के नाम से ही कर दिया। तभी भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर रामप्पा मंदिर कहा जाने लगा।

वेंकटपुर मण्डल के मुलुग तालुक में स्थित रामप्पा मंदिर को 13 वीं शताब्दी में भारत आए इटली के मशहूर खोजकर्ता मार्को पोलो ने ‘मंदिरों की आकाशगंगा का सबसे चमकीला तारा’ कहा था। 40 साल में बनकर तैयार हुआ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जिन्हें रामलिंगेश्वर भी कहा जाता है। मुख्य मंदिर परिसर 6 फुट ऊँचे एक प्लेटफॉर्म पर बना हुआ है। शिखर और प्रदक्षिणा पथ मंदिर की संरचना के प्रमुख अवयव हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही, नंदी मंडपम है जहाँ नंदी की एक विशाल प्रतिमा है।

विशेष बातें

अक्सर हमने देखा है कि भारत के प्राचीन मंदिरों के नाम उन्हें बनवाने वाले राजा अथवा मंदिर में विराजमान देवताओं के पौराणिक नामों से संबंधित होते हैं। लेकिन तेलंगाना पर्यटन विभाग के अनुसार रामप्पा मंदिर संभवतः देश का इकलौता ऐसा मंदिर है, जिसका नामकरण उसे बनने वाले मुख्य शिल्पकार के नाम पर हुआ। यह महान काकतीय राजाओं के उस सम्मान को प्रदर्शित करता है जो उन्होंने एक महान कलाकार के प्रति दिखाया।

इसके अलावा मंदिर अपनी उस विशेषता के लिए भी प्रसिद्ध है जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। मंदिर लगभग 800 सालों तक बिना किसी नुकसान के खड़ा रहा। ऐसे में लोगों के मन में यह प्रश्न आया कि इसके बाद बने मंदिर (इस्लामिक आक्रान्ताओं से बचे हुए) अपने पत्थरों के भार से खुद ही क्षतिग्रस्त हो गए, लेकिन यह मंदिर उसई अवस्था में आज भी कैसे है। इस रहस्य का पता लगाने के लिए पुरातत्व विभाग मंदिर पहुँचा। विभाग द्वारा जाँच के उद्देश्य से मंदिर से एक पत्थर के टुकड़े को काटा गया और उसकी जाँच की गई। यह पत्थर भार में अत्यंत हल्का था। इस पत्थर की सबसे बड़ी विशेषता थी कि आर्कमिडीज के सिद्धांत के विपरीत यह पानी में तैरता है।

यही करण था कि जहाँ एक ओर बाकी मंदिर अपने पत्थरों के भार के करण ही क्षतिग्रस्त हो गए, वहीं यह मंदिर हल्के पत्थरों के कारण उसी अवस्था में रहा जैसा बनाया गया था। लेकिन यह रहस्य सुलझा नहीं था बल्कि और भी गहरा हो गया था क्योंकि राम सेतु के अलावा ऐसे पत्थर पूरी दुनिया में कहीं नहीं हैं जो पानी में तैरते हों और यह एक बड़ा प्रश्न बन गया कि आज से 800 साल पहले आखिरकार पानी में तैरने वाले पत्थर इतनी बड़ी संख्या में कहाँ से आए? एक प्रश्न भी अब विशेषज्ञों के मन में घर कर गया कि क्या रामप्पा ने खुद इन पत्थरों का निर्माण किया था?

कैसे पहुँचे

वारंगल में ही हवाई अड्डा मौजूद है जो रामप्पा मंदिर से लगभग 70 किमी की दूरी पर है। यहाँ से देश के सभी बड़े शहरों के लिए उड़ानें उपलब्ध हैं। रेलमार्ग से भी वारंगल देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। यहाँ दो रेलवे स्टेशन हैं, एक वारंगल में और दूसरा काजीपेट में। रामप्पा मंदिर से वारंगल स्टेशन की दूरी लगभग 65 किमी है, जबकि काजीपेट जंक्शन मंदिर से लगभग 72 किमी की दूरी पर है। इसके अलावा वारंगल राष्ट्रीय राजमार्ग 163 और 563 पर स्थित है। साथ ही यहाँ से होकर राज्यमार्ग 3 भी गुजरता है। वारंगल पहुँचने के बाद रामप्पा मंदिर तक पहुँचने के लिए बड़ी संख्या में परिवहन के साधन उपलब्ध हैं। UNESCO की विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल होने के बाद अब यहाँ सुविधाओं का और भी अधिक विस्तार किया जाना निश्चित है।



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Amol Kote

Some say he’s half man half fish, others say he’s more of a seventy/thirty split. Either way he’s a fishy bastard.

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