केरल: असुर ने स्थापित किया शिवलिंग, पांडव ने की पूजा; शोभायात्रा में शामिल होते हैं साढ़े 7 स्वर्ण हाथी
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ऑपइंडिया की मंदिरों की श्रृंखला में आज हम आपको ले चलेंगे केरल जहाँ एट्टूमानूर में स्थित है सदियों पुराना भगवान शिव का मंदिर। केरल वैसे तो कई विशेष और भव्य मंदिरों की भूमि माना जाता है, लेकिन कोट्टयम जिले में स्थित एट्टूमानूर महादेव मंदिर अपने आप में अनूठा है। इस मंदिर का इतिहास रामायण और महाभारत से जुड़ा हुआ है। एट्टूमानूर महादेव मंदिर में भगवान शिव की एक ऐसी प्रतिमा है जिसकी स्थापना असुर खर ने की थी।
3 मंदिर
माना जाता है कि असुर खर ने भगवान शिव से आशीर्वाद स्वरूप तीन शिवलिंग प्राप्त किए। खर उन तीनों को लेकर केरल आया। उसने एक शिवलिंग अपने दाँतों में दबा रखा था, वहीं दो अन्य शिवलिंग अपने दोनों हाथों में। जो शिवलिंग खर के दाँतों में दबाया गया था वह स्थापित हुआ कदुथुरुति (Kaduthuruthi) में। दाएँ हाथ में जो शिवलिंग था वह वाईकोम में और बाएँ हाथ का शिवलिंग स्थापित हुआ एट्टूमानूर में। शिवलिंगों की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद इन तीन स्थानों पर मंदिरों का निर्माण हुआ। ये तीनों ही मंदिर हिंदुओं के लिए विशेष महत्व के हैं।
एट्टूमानूर महादेव मंदिर के विषय में यह भी मान्यता है कि यहाँ पांडव और महर्षि व्यास ने भी भगवान शिव की पूजा की थी। मंदिर के विषय में प्राप्त जानकारी के अनुसार एट्टूमानूर महादेव मंदिर के वर्तमान दृश्य स्वरूप का निर्माण आज से लगभग 5 शताब्दी पहले सन् 1542 में हुआ था। मंदिर का निर्माण केरल की वास्तुशैली के अनुसार हुआ है।
संरचना
केरल वास्तुशैली में बने एट्टूमानूर महादेव मंदिर की विशेषता है दीवार पर बनी मुराल पेंटिंग। इस मंदिर की दीवार पर द्रविड़ शैली में मुराल पेंटिंग उकेरी गई है। मंदिर का ऊपर नंदी की प्रतिमा है जो घंटियों और बरगद के पेड़ की धातु से बनी पत्तियों से घिरी हुई है। इसके अलावा मंदिर अपने शानदार गोपुरम और कॉपर की प्लेट से सजी हुई छत के लिए भी जाना जाता है।
मंदिर में प्रवेश करते ही एक बड़ा सा तांबे का दीपक दिखाई देता है जो हमेशा प्रज्ज्वलित रहता है। इस दीपक पर श्रद्धालु तेल डालते रहते हैं जिससे इसमें हमेशा अग्नि बनी रहती है। मंदिर में दीपक जलाने की प्रथा बहुत पुरानी है और आज भी जारी है।
भगवान शिव के अतिरिक्त यहाँ भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित है। भगवान गणेश की यह प्रतिमा दक्षिणमुखी है जो कि बहुत दुर्लभ है। मंदिर में कई लकड़ी की मूर्तियाँ भी देखी जा सकती हैं।
अरट्टु त्योहार
हर साल फरवरी से मार्च के दौरान मंदिर में अरट्टु त्योहार मनाया जाता है। कई दिनों तक चलने वाले इस त्योहार का आठवाँ और दसवाँ दिन सबसे खास माना जाता है। इस दिन साढ़े सात हाथियों की शोभा यात्रा निकलती है। कटहल की लकड़ी से बने ये हाथी 13 किग्रा सोने की प्लेट से मढ़े हुए होते हैं। इस शोभा यात्रा में कुल 8 हाथियों की प्रतिमाएँ शामिल होती हैं। इनमें से 7 2 फुट की, जबकि आठवीं प्रतिमा 1 फुट की होती है। इसलिए इन हाथियों को साढ़े सात हाथी कहा जाता है। मंदिर के त्योहार के दौरान इन्हें ‘एझारापोन्नाना’ कहा जाता है।
हाथियों की ये स्वर्ण प्रतिमाएँ यहाँ कैसे आईं, इसके विषय में पर्याप्त जानकारी का अभाव है। कहा जाता है कि जब इस्लामिक आक्रांता टीपू सुल्तान की सेना त्रावणकोर को लूटने उसकी सीमा तक पहुँची थी, तब त्रावणकोर के राजा ने मंदिर में ये हाथी की प्रतिमाएँ दे दी थीं।
कैसे पहुँचे
एट्टूमानूर महादेव मंदिर केरल के कोट्टयम जिले के एक छोटे से कस्बे एट्टूमानूर में स्थित है। यहाँ से नजदीकी स्थित हवाईअड्डा कोच्चि एयरपोर्ट है जो लगभग 73 किमी की दूरी पर है। इसके अलावा एट्टूमानूर में रेलवे स्टेशन की सुविधा है। एट्टूमानूर रेलमार्ग से केरल समेत दक्षिण भारत के कई शहरों से जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग से एट्टूमानूर पहुँचना काफी आसान है। एट्टूमानूर में ही, बस स्टैन्ड है जहाँ केरल के कई दूसरे स्थानों से बसें संचालित होती हैं। केरल की मेन सेंट्रल रोड एट्टूमानूर को राज्य के कई बड़े शहरों से जोड़ती है।
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