7 पायलटों की टारगेट किलिंग, तालिबान ने अफगानिस्तान के 85% हिस्से पर कब्जे का किया दावा: 1000 जवान तजाकिस्तान भागे
--- 7 पायलटों की टारगेट किलिंग, तालिबान ने अफगानिस्तान के 85% हिस्से पर कब्जे का किया दावा: 1000 जवान तजाकिस्तान भागे लेख आप ऑपइंडिया वेबसाइट पे पढ़ सकते हैं ---
जहाँ एक तरफ अमेरिका तेजी से अफगानिस्तान से अपनी सेना हटा रहा है, वहीं दूसरी तरफ तालिबान ने दावा किया है कि इस मुल्क के 85% भू-भाग पर अब उसका ही राज़ है। अफगानिस्तान में तालिबान ने हाल ही में पायलटों की हत्या की है, जिसके बाद वहाँ की वायुसेना के अधिकारी भी अपना घर-संपत्ति बेच कर किसी सुरक्षित जगह बसने में लगे हुए हैं। ऐसे ही एक अधिकारी और एक रियल एस्टेट एजेंट की गोली मार कर हत्या कर दी गई।
पिछले कुछ महीनों में अफगानिस्तान के 7 पायलटों की हत्या कर दी गई है। ये टारगेट किलिंग है, जिसका उद्देश्य है कि अमेरिका और नाटो द्वारा प्रशिक्षित किए गए अफगानिस्तान के पायलटों का सफाया कर दिया जाए। चूँकि तालिबान के पास कोई वायुसेना नहीं है, इसीलिए वो जमीन पर युद्ध के लिए अफगानिस्तान के सुरक्षा बलों को मजबूर कर रहा है, क्योंकि यही उसकी मजबूती है। इसीलिए, वायुसेना अधिकारियों को निशाना बनाया जा रहा है।
समाचार एजेंसी रायटर्स को तालिबान के एक प्रवक्ता ने बताया कि उसने अफगानिस्तान के पायलटों को निशाना बनाने का एक अभियान शुरू किया है, क्योंकि ये लोग उनके ठिकानों पर बमबारी करते हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट का कहना है कि 2021 के पहले 3 महीनों में तालिबान के कारण 229 नागरिकों की मौत हुई है और अफगानिस्तान की वायुसेना 41 नागरिकों की मौत का कारण बनी है।
अफगानिस्तान की सरकार ने पायलटों की हत्याओं पर कोई टिप्पणी नहीं की है। अमेरिका का कहना है कि वो इस तरह की घटनाओं से वाकिफ है। अफगानिस्तान के अधिकारियों का कहना है कि पायलटों को प्रशिक्षित करने में वर्षों लगते हैं और वो न सिर्फ थलसेना की ज़रूरी मदद करते हैं, बल्कि आतंकी ठिकानों पर बमबारी से लेकर हमले की साजिश रच रहे तालिबानी आतंकियों को निशाना बनाने की क्षमता रखते हैं।
ये पायलट जहाँ रह रहे होते हैं, वहीं आसपास से आतंकी आकर उन्हें निशाना बना देते हैं। काबुल के बाहर बगराम एयर बेस को अमेरिकी वायुसेना ने अपना मुख्य ठिकाना बनाया था, लेकिन अब वो इसे खाली कर चुके हैं। अफगानिस्तानी पायलट तालिबान की हिट लिस्ट में शीर्ष पर हैं। अमेरिका ने कहा है कि वो अफगानिस्तानी सेना की मदद करता रहेगा। लॉजिस्टिक्स से लेकर प्रशिक्षण और साजोसामान तक के लिए अफगान सुरक्षा बल अमेरिका पर ही निर्भर हैं।
अमेरिकी ख़ुफ़िया विभाग को आशंका है कि अगले 6 महीनों के भीतर अफगानिस्तान की सरकार गिर सकती है। हाल ही में एक हैलीकॉप्टर को शूट कर के तालिबान ने दो अफगान पायलटों को मार डाला। अफगानिस्तान की सरकार ने कहा कि एयरक्राफ्ट क्रैश हुआ है, जबकि उसने इसका कोई कारण नहीं बताया। अफगान सेना के पास महज 13 Mi-17 हैलीकॉप्टर थे और उन्हें उड़ाने के लिए 65 पायलट।
अफगानिस्तान के पास कुल 160 एयरक्राफ्ट हैं और उन्हें उड़ाने के लिए 339 एयर क्रू है, जो अमेरिकी कमर्शियल कंपनी ‘साउथवेस्ट एयरलाइन्स’ की क्षमता से भी कम है। इनमें से भी 140 ही ऐसे हैं जिन्हें उपयोग में लाया जा सकता है। बाकी मेंटेनेंस में लगे हुए हैं। अमेरिकी ख़ुफ़िया विभाग का मानना है कि यही स्थिति रही तो अफगानिस्तान की वायुसेना कुछ महीनों में प्रभावहीन हो जाएगी।
मेंटेनेंस के लिए कॉन्ट्रैक्टर्स भी अब अफगानिस्तान में कम हो जाएँगे, जिसके बाद उसे एयरक्राफ्ट्स को इसके लिए विदेश भेजना पड़ेगा। कहा जा रहा है कि अफगानिस्तान के 407 जिलों में से आधे के लगभग, यानी 203 जिलों पर तालिबान का कब्ज़ा है। हाल ही में उसने अपने कब्जे वाले जिलों की संख्या दोगुनी की है, जिसके बाद वो ये आँकड़े तक पहुँचा। अमेरिका का कहना है कि 100 जिलों पर तालिबान का कब्ज़ा है।
Taliban claims to control 85% of Afghanistan after rapid gains https://t.co/60YJtVEZYQ
— Al Jazeera English (@AJEnglish) July 9, 2021
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन का कहना है कि वो अफगानिस्तान की सेना पर भरोसा करते हैं, जो अमेरिका के वहाँ से निकलने के बाद मुल्क को संभालेगी। मुल्क छोड़ चुके एक वरिष्ठ पायलट ने बताया कि एक पायलट के प्रशिक्षण वगैरह पर बड़ी रकम खर्च होती है, लेकिन उनकी सुरक्षा पर कुछ खर्च नहीं किया जाता। अफगानिस्तान सुरक्षा बल के 1000 जवान भाग कर पड़ोसी तजाकिस्तान में चले गए थे, जिनमें से 300 लौट आए।
तालिबान के एक प्रतिनिधिमंडल ने रूस का दौरा भी किया। राजधानी मॉस्को में पहुँचे इस प्रतिनिधिमंडल ने रूस को आश्वासन दिया कि अफगानिस्तान में उसका प्रभाव बढ़ने से रूस या मध्य एशिया में उसके सहयोगी देशों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। तजाकिस्तान ने 20,000 सैनिकों को अपनी दक्षिणी सीमा पर लगाया है, ताकि अफगानिस्तान में तालिबानी खतरे को वहाँ घुसने से रोका जाए। तालिबान का कहना है कि वो लड़ाई नहीं, बल्कि ‘राजनीतिक समाधान’ चाहता है।
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