‘IMA किसी मजहब का प्रचार-प्रसार न करे’: कोर्ट ने JA जयलाल को चेताया, हिंदू धर्म के अपमान पर नहीं दिया कोई आदेश

June 05, 2021 0 Comments

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दिल्ली की एक अदालत ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) अध्यक्ष प्रोफेसर डॉक्टर जॉनरोज ऑस्टिन जयलाल को नसीहत दी है कि वो किसी मजहब के प्रचार-प्रसार के लिए IMA प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल न करें। हालाँकि, कोर्ट ने साथ ही उस याचिका को रद्द कर दिया, जिसमें हिन्दू धर्म के अपमान के लिए उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा चलाने की अपील की गई थी। एडिशनल सेशन जज अजय गोयल ने ये फैसला सुनाया।

उन्होंने गुरुवार (जून 3, 2021) को सुनाए गए फैसले में रोहित झा नामक व्यक्ति द्वारा दायर किए गए शूट को डिसमिस कर दिया। इस दौरान जज ने पाकिस्तान के कट्टरवादी इस्लामी कवि मोहम्मद इकबाल की पंक्तियाँ ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना’ भी सुनाया। ‘उम्माह’ के पैरोकार अल्लामा इकबाल ने ‘मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा’ लिखा था और मूर्तिपूजा का मखौल उड़ाया था।

ASJ गोयल ने अपने आदेश में लिखा, “मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा, सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा”। जज ने कहा कि मुस्लिम कवि द्वारा लिखे गए इस तराने में जो ‘हिन्दी’ शब्द है, वो हिन्दुओं की नहीं बल्कि सारे हिन्दुस्तानियों की बात करता है, भले ही उनका जाति-मजहब अलग हो। जज गोयल ने आगे लिखा कि यही तो सेक्युलरिज्म की सुंदरता है।

अदालत ने कहा कि डॉक्टर JA जयलाल ने सुनवाई के दौरान आश्वासन दिया है कि वो आगे इस तरह की गतिविधियों (IMA के माध्यम से ईसाई मजहब के प्रचार-प्रसार) में लिप्त नहीं रहेंगे, इसीलिए उनके खिलाफ कोई आदेश देने की ज़रूरत नहीं है। दिसंबर 2020 में भारत में मेडिकल प्रोफेशनल्स का सबसे बड़ा संगठन IMA के अध्यक्ष बनाए गए जॉनरोज ऑस्टिन जयलाल पर आरोप है कि वो IMA को ढाल बना कर अपने पद का दुरूपयोग करते हुए राष्ट्र को गुमराह कर रहे हैं और हिन्दुओं को ईसाई धर्मांतरण करने के लिए उकसा रहे हैं।

याचिका में डॉक्टर JA जयलाल के इंटरव्यूज और लेखों का हवाला देते हुए माँग की गई थी कि IMA अध्यक्ष को ऐसा कुछ भी लिखने या मीडिया में बोलने से मना किया जाए, जो हिन्दू धर्म या आयुर्वेद का अपमान करता हो। कोर्ट ने कहा कि सेक्युलरिज्म भारतीय संविधान के मूलभूत पहलुओं में से एक है और और इसे ज़िंदा रखने की जिम्मेदारी किसी एक संप्रदाय की नहीं है, बल्कि सभी भारतीयों को इसके लिए संचित प्रयास करने होंगे।

लेकिन, साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने की भी स्वतंत्रता है, लेकिन इसमें किसी अन्य धर्म का अपमान नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सरकारों, अधिकारियों, सार्वजनिक संगठनों और प्राइवेट बॉडीज द्वारा किसी एक मजहब के ऊपर दूसरे को बढ़ावा देना सेक्युलरिज्म के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि ऐसी हरकतें निष्पक्षता को किनारे करती है, भेदभाव को बढ़ावा देती है और बराबरी के व्यवहार को ख़त्म करती है।

कोर्ट ने कहा कि किसी संस्था द्वारा एक्सक्लूसिव रूप से किसी खास मजहब को बढ़ावा देने का अर्थ है कि वो संविधान के सेक्युलर कैरेक्टर के खिलाफ जा रहा है और नैतिकता के संवैधानिक मूल्य के पालन से इनकार कर रहा है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी परिस्थिति का फायदा उठा कर किसी पर दबाव या लालच के जरिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने याद दिलाया कि सुश्रुत सर्जरी के देवता हैं और सर्जरी एलॉपथी का अहम हिस्सा है।

ASJ गोयल ने कहा कि ये विवाद एलॉपथी और आयुर्वेद का बन गया है लेकिन वो इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे। उन्होंने कहा कि इलाज की सभी विधियाँ महत्वपूर्ण हैं और परिस्थितियों के हिसाब से सभी के अपने फायदे-नुकसान हैं। साथ ही चेताया कि बड़े पदों पर बैठे लोगों को गैर-जिम्मेदाराना बयान नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि IMA का उद्देश्य मेडिकल कर्मचारियों का हित है, इस मंच का इस्तेमाल किसी के मजहब के प्रचार-प्रसार में न हो।



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Amol Kote

Some say he’s half man half fish, others say he’s more of a seventy/thirty split. Either way he’s a fishy bastard.

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